Krishan Chalisa | श्री कृष्ण चालीसा - कृष्ण जी की कृपा से सिद्धि-बुद्धि,धन-बल और ज्ञान-विवेक की प्राप्ति

कृष्ण चालीसा का पाठ करने से सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है। कृष्ण की कृपा से सिद्धि-बुद्धि,धन-बल और ज्ञान-विवेक की प्राप्ति होती है। कृष्ण के प्रभाव से इंसान धनी बनता है, वो तरक्की करता है। वो हर तरह के सुख का भागीदार बनता है, उसे कष्ट नहीं होता। कृष्ण शक्ति-ज्ञान के मालिक है, उनकी कृपा मात्र से ही इंसान सारी तकलीफों से दूर हो जाता है और वो तेजस्वी बनता है।

जय श्री कृष्ण

कृष्ण चालीसा का महत्व

कृष्ण जन्माष्टमी के दिन कृष्ण चालीसा का पाठ अवश्य करना चाहिए। मान्यता है कि कृष्ण जन्माष्टमी के दिन श्री कृष्ण की चालीसा पाठ करने से भगवान श्री कृष्ण की विशेष कृपा बनी रहती है।

प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। इस दिन श्री कृष्ण के भक्त व्रत रखते हैं और पूजा करते हैं। मान्यता है कि व्रत करने से व्यक्ति को साल भर के व्रतों से भी अधिक शुभ फल प्राप्त होते हैं। संतान प्राप्ति की कामना रखने वाले दंपति को कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत जरूर रखना चाहिए। इसके अलावा इस दिन कृष्ण चालीसा का पाठ अवश्य करना चाहिए। मान्यता है कि कृष्ण जन्माष्टमी के दिन श्री कृष्ण की चालीसा पाठ करने से भगवान श्री कृष्ण की विशेष कृपा बनी रहती है। साथ ही जीवन के सभी दुख और विपत्ति समाप्त हो जाते हैं।

कृष्ण चालीसा पाठ एवं पूजा विधि 

श्री कृष्ण चालीसा (Krishna Chalisa) का पाठ करने से मनुष्य को सुख-शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। यदि आप जन्माष्टमी के दिन श्री कृष्ण चालीसा का पाठ करते हैं तो आपके जीवन में धन की कमी कभी नहीं आती और संतान, नौकरी, प्रेम आदि क्षेत्रों भी आपको सफलता अर्जित होती है। भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने के लिये आपको कृष्ण चालीसा का पाठ अवश्य करना चाहिये। कृष्ण चालीसा का निर्माण 40 छंदों से हुआ है। कृष्ण चालीसा का पाठ करने से मन को शांति मिलती है। कृष्ण चालीसा इस प्रकार है...


अब आप श्री कृष्ण चालीसा पाठ शुरू करें
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जय श्री राधाकृष्ण

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 श्री कृष्ण चालीसा 

!! Shree Krishan Chalisa
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॥ दोहा ॥

बंशी शोभित कर मधुर,नील जलद तन श्याम।
अरुण अधर जनु बिम्बा फल,पिताम्बर शुभ साज॥
जय मनमोहन मदन छवि,कृष्णचन्द्र महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय,राखहु जन की लाज॥

!! चौपाई !! 

जय यदुनन्दन जय जगवन्दन।जय वसुदेव देवकी नन्दन॥
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे।जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥
जय नट-नागर नाग नथैया।कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो।आओ दीनन कष्ट निवारो॥
वंशी मधुर अधर धरी तेरी।होवे पूर्ण मनोरथ मेरो॥
आओ हरि पुनि माखन चाखो।आज लाज भारत की राखो॥
गोल कपोल, चिबुक अरुणारे।मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥
रंजित राजिव नयन विशाला।मोर मुकुट वैजयंती माला॥
कुण्डल श्रवण पीतपट आछे।कटि किंकणी काछन काछे॥
नील जलज सुन्दर तनु सोहे।छवि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥
मस्तक तिलक, अलक घुंघराले।आओ कृष्ण बांसुरी वाले॥
करि पय पान, पुतनहि तारयो।अका बका कागासुर मारयो॥
मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला।भै शीतल, लखितहिं नन्दलाला॥
सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई।मसूर धार वारि वर्षाई॥
लगत-लगत ब्रज चहन बहायो।गोवर्धन नखधारि बचायो॥
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई।मुख महं चौदह भुवन दिखाई॥
दुष्ट कंस अति उधम मचायो।कोटि कमल जब फूल मंगायो॥
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें।चरणचिन्ह दै निर्भय किन्हें॥
करि गोपिन संग रास विलासा।सबकी पूरण करी अभिलाषा॥
केतिक महा असुर संहारयो।कंसहि केस पकड़ि दै मारयो॥
मात-पिता की बन्दि छुड़ाई।उग्रसेन कहं राज दिलाई॥
महि से मृतक छहों सुत लायो।मातु देवकी शोक मिटायो॥
भौमासुर मुर दैत्य संहारी।लाये षट दश सहसकुमारी॥
दै भिन्हीं तृण चीर सहारा।जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥
असुर बकासुर आदिक मारयो।भक्तन के तब कष्ट निवारियो॥
दीन सुदामा के दुःख टारयो।तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो॥
प्रेम के साग विदुर घर मांगे।दुर्योधन के मेवा त्यागे॥
लखि प्रेम की महिमा भारी।ऐसे श्याम दीन हितकारी॥
भारत के पारथ रथ हांके।लिए चक्र कर नहिं बल ताके॥
निज गीता के ज्ञान सुनाये।भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये॥
मीरा थी ऐसी मतवाली।विष पी गई बजाकर ताली॥
राना भेजा सांप पिटारी।शालिग्राम बने बनवारी॥
निज माया तुम विधिहिं दिखायो।उर ते संशय सकल मिटायो॥
तब शत निन्दा करी तत्काला।जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥
जबहिं द्रौपदी टेर लगाई।दीनानाथ लाज अब जाई॥
तुरतहिं वसन बने ननन्दलाला।बढ़े चीर भै अरि मुँह काला॥
अस नाथ के नाथ कन्हैया।डूबत भंवर बचावत नैया॥
सुन्दरदास आस उर धारी।दयादृष्टि कीजै बनवारी॥
नाथ सकल मम कुमति निवारो।क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥
खोलो पट अब दर्शन दीजै।बोलो कृष्ण कन्हैया की जै॥

॥ दोहा ॥

यह चालीसा कृष्ण का,पाठ करै उर धारि।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल,लहै पदारथ चारि॥

!! इति !!



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हरे कृष्णा

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श्री कृष्ण जी की आरती 

!! Shree Krishan Ji Ki Aarti !!
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आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली।
लतन में ठाढ़े बनमाली;
भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक;
ललित छवि श्यामा प्यारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥... 

कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं।
गगन सों सुमन रासि बरसै;
बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग;
अतुल रति गोप कुमारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥...

जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा।
स्मरन ते होत मोह भंगा;
बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच;
चरन छवि श्रीबनवारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥... 

चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू;
हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद;
टेर सुन दीन भिखारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥... 

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥



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तो प्रेम से बोलिए! हृदय से बोलिए! मन से बोलिए!
" श्री काली माई की जय"
" खप्पर धारणी माता की जय "
" श्री अम्बेमात की जय "
" कालका माई की जय "
" सभी देवी-देवताओं की जय "
" सनातन धर्म की जय "
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श्रीकृष्ण चालीसा के पाठ से मिलते हैं ये लाभ 

जातक को समाज में यश मिलता है। सुख-समृद्धि का जीवन में वास होता है। आर्थिक स्थिति बेहतर होती है और धन-वैभव की कमी नहीं रहती है। प्रक्रम में वृद्धि होती है। घर-परिवार में खुशियों का आगमन होता है। इतना ही नहीं, श्रीकृष्ण चालीसा का पाठ करने से संतान प्राप्ति के योग बनते हैं। नौकरी-व्यापार की स्थिति अछि बनी रहती है।


समभावित प्रश्न जो अक्सर सभी के मन में आते हैं?

श्री कृष्ण चालीसा पाठ के नियम क्या हैं?
श्री कृष्ण चालीसा पाठ कौन कर सकता है?
कृष्ण चालीसा पाठ को कब करना चाहिए?
श्री कृष्ण चालीसा का पाठ घर में पढें या मंदिर में?


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श्री कृष्ण जी की आरती : आरती कुंजबिहारी की

श्री राधा जी की आरती 1 : आरती श्री वृषभानुसुता की 

श्री राधा जी की आरती 2 : आरती राधा जी की कीजै 

संकटमोचन हनुमानाष्टक : बाल समय रबि भक्षि लियो तब  

श्रीराम-स्तुति : श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं 



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