Suryadev Chalisa | सूर्यदेव चालीसा - सूर्य की उपासना में सूर्य चालीसा का विशेष महत्व

हिंदू धर्म में हर एक दिन किसी न किसी देवी-देवताओं को समर्पित होता है। इन्हीं में से एक दिन रविवार का दिन भगवान 'सूर्य देवता' को समर्पित है। ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक सूर्य की विधि विधान से पूजा पाठ करने से कुंडली में सूर्य की कमजोर स्थिति में सुधार हो सकता है। वेदों और पुराणों में सूर्य देव को सबसे मुख्य देवों में एक माना गया है। मात्र एक लोटा सुबह जल चढ़ाने पर ही सूर्य देव प्रसन्न हो जाते हैं। सूर्य देव की पूजा करना बहुत ही फलदायक माना गया है। सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए सूर्य चालीसा का पाठ हर रविवार को करना चाहिए।सूर्यदेव की चालीसा के पाठ का विशेष महत्व है।इसे करने से मानसिक और शारीरिक सुख की प्राप्ति होती हैं। सूर्य की उपासना में सूर्य चालीसा का विशेष महत्व है। आइए जानते हैं सूर्य चालीसा पढ़ने के लाभ के बारे में।

सूर्यदेव

सूर्य देव हिन्दू धर्म के देवता हैं। वेदों के अनुसार सूर्य देव इस जगत की आत्मा है। माना जाता है कि सूर्य देव की आराधना पुत्र की प्राप्ति के लिए शुभ फलदायी होती है। सूर्य देव को एक प्रत्यक्ष देव माना जाता है। सूर्य देव की पूजा में गायत्री मंत्र के साथ उनकी चालीसा भी पढ़ी जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य उपासना का बहुत अधिक महत्व होता है। सूर्य की उपासना करने से मानसिक और शारीरिक सुख की प्राप्ति होती है। सूर्य उपासना में भगवान सूर्य की इस चालीसा का बहुत अधिक महत्व है।

सूर्यदेव जी की पूजा का नियम

सूर्यदेव की पूजा के लिए सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें। इसके पश्चात् उगते हुए सूर्य का दर्शन करते हुए उन्हें ॐ घृणि सूर्याय नम: कहते हुए जल अर्पित करें। सूर्य को दिए जाने वाले जल में लाल रोली, लाल फूल मिलाकर जल दें।

सूर्य पूजन के लिए तांबे की थाली और तांबे के लोटे का उपयोग करें। लाल चंदन और लाल फूल की व्यवस्था रखें। एक दीपक लें।

लोटे में जल लेकर उसमें एक चुटकी लाल चंदन का पाउडर और लाल फूल भी डाल लें। थाली में दीपक और लोटा रख लें।
ॐ सूर्याय नमः मंत्र का जप करते हुए सूर्य को प्रणाम करें। लोटे से सूर्य देवता को जल चढ़ाएं। सूर्य मंत्र का जप करते रहें।

अर्घ्य समर्पित करते समय नजरें लोटे के जल की धारा की ओर रखें। जल की धारा में सूर्य का प्रतिबिम्ब एक बिन्दु के रूप में जल की धारा में दिखाई देगा।

सूर्य को अर्घ्य समर्पित करते समय दोनों भुजाओं को इतना ऊपर उठाएं कि जल की धारा में सूर्य का प्रतिबिंब दिखाई दे। सूर्य देव की आरती करें। सात प्रदक्षिणा करें व हाथ जोड़कर प्रणाम करें।

उगते हुए सूर्य को प्रणाम करने से उसका दर्शन करने से हमारे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। हमारी दिनचर्या नियमित बनती है। कारोबार में सफलता प्राप्त होती है। इसके लिए प्रातः काल उठकर सूर्यदेव को नमन करना चाहिए।


 अब आप सूर्यदेव चालीसा पाठ पढ़े! 
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सूर्यदेव चालीसा

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सूर्यदेव चालीसा

!! Suryadev Chalisa !!
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॥दोहा॥

कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग,
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग॥

॥चौपाई॥

जय सविता जय जयति दिवाकर, सहस्त्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर॥

भानु पतंग मरीची भास्कर, सविता हंस सुनूर विभाकर॥

विवस्वान आदित्य विकर्तन, मार्तण्ड हरिरूप विरोचन॥

अम्बरमणि खग रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते॥

सहस्त्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि॥

अरुण सदृश सारथी मनोहर, हांकत हय साता चढ़ि रथ पर॥

मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी॥

उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते,होते देखि पुरन्दर लज्जित होते॥

मित्र मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर, सविता सूर्य अर्क खग कलिकर॥

पूषा रवि आदित्य नाम लै, हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै॥

द्वादस नाम प्रेम सों गावैं, मस्तक बारह बार नवावैं॥

चार पदारथ जन सो पावै, दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै॥

नमस्कार को चमत्कार यह, विधि हरिहर को कृपासार यह॥

सेवै भानु तुमहिं मन लाई, अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई॥

बारह नाम उच्चारन करते, सहस जनम के पातक टरते॥

उपाख्यान जो करते तवजन, रिपु सों जमलहते सोतेहि छन॥

धन सुत जुत परिवार बढ़तु है, प्रबल मोह को फंद कटतु है॥

अर्क शीश को रक्षा करते, रवि ललाट पर नित्य बिहरते॥9॥

सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत, कर्ण देस पर दिनकर छाजत॥

भानु नासिका वासकरहुनित, भास्कर करत सदा मुखको हित॥

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ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे, रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे॥

कंठ सुवर्ण रेत की शोभा, तिग्म तेजसः कांधे लोभा॥

पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर, त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर॥

युगल हाथ पर रक्षा कारन, भानुमान उरसर्म सुउदरचन॥

बसत नाभि आदित्य मनोहर, कटिमंह, रहत मन मुदभर॥

जंघा गोपति सविता बासा, गुप्त दिवाकर करत हुलासा॥

विवस्वान पद की रखवारी, बाहर बसते नित तम हारी॥

सहस्त्रांशु सर्वांग सम्हारै, रक्षा कवच विचित्र विचारे॥

अस जोजन अपने मन माहीं, भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं॥

दद्रु कुष्ठ तेहिं कबहु न व्यापै, जोजन याको मन मंह जापै॥

अंधकार जग का जो हरता, नव प्रकाश से आनन्द भरता॥

ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही, कोटि बार मैं प्रनवौं ताही॥

मंद सदृश सुत जग में जाके, धर्मराज सम अद्भुत बांके॥

धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा, किया करत सुरमुनि नर सेवा॥

भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों, दूर हटतसो भवके भ्रम सों॥

परम धन्य सों नर तनधारी, हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी॥

अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन, मधु वेदांग नाम रवि उदयन॥

भानु उदय बैसाख गिनावै, ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै॥

यम भादों आश्विन हिमरेता, कातिक होत दिवाकर नेता॥

अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं, पुरुष नाम रविहैं मलमासहिं॥

॥दोहा॥
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य,
सुख सम्पत्ति लहि बिबिध, होंहिं सदा कृतकृत्य॥


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श्री सूर्यदेव जी की आरती

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श्री सूर्यदेव जी की आरती

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जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव ।

रजनीपति मदहारी, शतदल जीवनदाता ।

षटपद मन मुदकारी, हे दिनमणि ! ताता ।

जग के हे रविदेव, जय जय जय रविदेव ।

नभमण्डल के वासी, ज्योतिप्रकाश देवा ।

निज जनहित सुखरासी, तेरी हम सब सेवा ।

करते हैं रविदेव, जय जय जय रविदेव ।

कनक बदन महं सोहत, रुचि प्रभा प्यारी ।

निज मंडल से मंडित, अजर अमर छवि धारी ।

हे सुरवर रविदेव जय जय जय रविदेव ।


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तो प्रेम से बोलिए! हृदय से बोलिए! मन से बोलिए!
" सूरज भगवान की जय"
" ॐ सूर्य देवाताए नम: "
" ॐ आदित्य देवाए नम: "
" ॐ भास्कराय नम: "
" सभी देवी-देवताओं की जय "
" सनातन धर्म की जय "
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सूर्यदेव चालीसा पाठ के अदभुत लाभ

सूर्य देव की पूजा प्रतिदिन करने से व्यक्ति निडर बनता है और उसे किसी भी चीज़ का भय नहीं रहता।
सूर्य देव के आशीर्वाद से शत्रुओं पर भी विजय प्राप्त होती है।
सभी रोगों का नाश होता है और मनुष्य शारीरिक और मानसिक दोनों ही रूपों से स्वस्थ रहता है।
जीवन में आने वाली समस्त बाधाएं दूर होती हैं।
सूर्य देव की पूजा करने से अच्छे आचरण की प्राप्ति होती है, साथ ही मनुष्य की वाणी भी मधुर हो जाती है।
अहंकार, द्वेष, छल, कपट, लोभ, क्रोध आदि जैसे बुरे विचार मन में नहीं आते हैं।
सूर्य देव सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करते हैं।
सूर्य देव की कृपा से मनुष्य की बुद्धि का भी विकास होता है।
घर में कलह क्लेश नहीं होता हैं।
संध्या के समय फिर से सूर्य को अर्घ्य देना लाभदायक होता है।




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