माता पार्वती दुर्गा देवी का ही रूप है। दुर्गा देवी सारे संसार की रचयिता हैं। सारे जग की पालनहार हैं। शिव पार्वती की पूजा करने से दांपत्य जीवन सुखमय होता है। घर में सुख सौभाग्य की वृद्धि होती है और समृद्धि आती है। श्रावण मास में पार्वती जी का व्रत करने से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती है। पार्वती चालीसा का पाठ करने से सौभाग्य में वृद्धि होती है। घर में धनधान्य की प्रचुरता रहती है। समाज में प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती हैं। श्रावण मास में सोमवार के दिन शिवजी के व्रत किए जाते हैं वैसे ही श्रावण में मंगलवार को मंगला गौरी के व्रत किए जाते हैं और पार्वती चालीसा का पाठ किया जाता है जो पारिवारिक जीवन के लिए अत्यंत लाभदायक है।
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देवी पार्वती | माता पार्वती |
माता पार्वती ने दुष्टों का संहार करने के लिए अलग-अलग समय में अलग-अलग अवतार धारण किए हैं जिन्हें कई नामों से जाना जाता है जैसे मां काली, मां दुर्गा, मां रणचंडी, माता काल भैरवी, माता ज्वाला इत्यादि। जब भी माता के भक्तों पर कभी विपत्ति आई तब माता ने अपने भक्तों की रक्षा के लिए अपने कई रूपों के दर्शन दिए तथा भक्तों की सहायता की, और दुष्टों का संहार कर उन्हें मोक्ष प्रदान कर दिया। माता आदिशक्ति को जो भी भक्त सच्चे हृदय से पूजता है उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है तथा उसके कष्टों का निवारण हो जाता है।
माता पार्वती के चालीसा पाठ करने के नियम
पार्वती चालीसा का पाठ अत्यंत सौभाग्य दायक है। पार्वती चालीसा का पाठ करने के लिए सुबह स्नान आदि से निवृत होकर लाल वस्त्र धारण करें।
मंदिर में लाल कपड़ा बिछाकर पार्वती माता की तस्वीर या मूर्ति रखें।
तांबे के कलश में पानी भरकर रखें।
पार्वती माता को रोली और अक्षत से तिलक लगाएं। स्वयं भी तिलक लगाएं।
सभी साज सिंगार करके माता पार्वती की पूजा करें। पार्वती माता सौभाग्य दायिनी है, इसलिए इनकी पूजा सौभाग्य में वृद्धि करती है।
पार्वती चालीसा का पाठ करते समय लाल आसन पर बैठें।
पार्वती चालीसा का पाठ करते समय गाय के घी से दीपक जलाएं।
पार्वती माता को लाल गुलाब के फूल अर्पित करें। पार्वती माता को लाल चुनड़ चढ़ाएं।
सुहागन की चीजें जैसे- सिंदूर, मेहंदी, बिंदी,चूड़ियां, काजल,चुनरी आदि पार्वती माता को चढ़ाएं।
अब पार्वती माता के चालीसा का पाठ आरम्भ करें!
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माता पार्वती चालीसा
!! Mata Parwati Chalisa !!
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दोहा
जय गिरी तनये दक्षजे शम्भू प्रिये गुणखानि।
गणपति जननी पार्वती अम्बे शक्ति! भवानि॥
॥चौपाई॥
ब्रह्मा भेद न तुम्हरो पावे, पंच बदन नित तुमको ध्यावे।
षड्मुख कहि न सकत यश तेरो, सहसबदन श्रम करत घनेरो।।
तेऊ पार न पावत माता, स्थित रक्षा लय हिय सजाता।
अधर प्रवाल सदृश अरुणारे, अति कमनीय नयन कजरारे।।
ललित ललाट विलेपित केशर, कुंकुंम अक्षत शोभा मनहर।
कनक बसन कंचुकि सजाए, कटी मेखला दिव्य लहराए।।
कंठ मदार हार की शोभा, जाहि देखि सहजहि मन लोभा।
बालारुण अनंत छबि धारी, आभूषण की शोभा प्यारी।।
नाना रत्न जड़ित सिंहासन, तापर राजति हरि चतुरानन।
इन्द्रादिक परिवार पूजित, जग मृग नाग यक्ष रव कूजित।।
गिर कैलास निवासिनी जय जय, कोटिक प्रभा विकासिनी जय जय।
त्रिभुवन सकल कुटुंब तिहारी, अणु अणु महं तुम्हारी उजियारी।।
हैं महेश प्राणेश तुम्हारे, त्रिभुवन के जो नित रखवारे।
उनसो पति तुम प्राप्त कीन्ह जब, सुकृत पुरातन उदित भए तब।।
बूढ़ा बैल सवारी जिनकी, महिमा का गावे कोउ तिनकी।
सदा श्मशान बिहारी शंकर, आभूषण हैं भुजंग भयंकर।।
कण्ठ हलाहल को छबि छायी, नीलकण्ठ की पदवी पायी।
देव मगन के हित अस किन्हो, विष लै आपु तिनहि अमि दिन्हो।।
ताकी, तुम पत्नी छवि धारिणी, दुरित विदारिणी मंगल कारिणी।
देखि परम सौंदर्य तिहारो, त्रिभुवन चकित बनावन हारो।।
भय भीता सो माता गंगा, लज्जा मय है सलिल तरंगा।
सौत समान शम्भू पहआयी, विष्णु पदाब्ज छोड़ि सो धायी।।
तेहि कों कमल बदन मुरझायो, लखी सत्वर शिव शीश चढ़ायो।
नित्यानंद करी बरदायिनी, अभय भक्त कर नित अनपायिनी।।
अखिल पाप त्रयताप निकन्दिनी, माहेश्वरी, हिमालय नन्दिनी।
काशी पुरी सदा मन भायी, सिद्ध पीठ तेहि आपु बनायी।।
भगवती प्रतिदिन भिक्षा दात्री, कृपा प्रमोद सनेह विधात्री।
रिपुक्षय कारिणी जय जय अम्बे, वाचा सिद्ध करि अवलम्बे।।
गौरी उमा शंकरी काली, अन्नपूर्णा जग प्रतिपाली।
सब जन की ईश्वरी भगवती, पतिप्राणा परमेश्वरी सती।।
तुमने कठिन तपस्या कीनी, नारद सों जब शिक्षा लीनी।
अन्न न नीर न वायु अहारा, अस्थि मात्रतन भयउ तुम्हारा।।
पत्र घास को खाद्य न भायउ, उमा नाम तब तुमने पायउ।
तप बिलोकी ऋषि सात पधारे, लगे डिगावन डिगी न हारे।।
तब तव जय जय जय उच्चारेउ, सप्तऋषि, निज गेह सिद्धारेउ।
सुर विधि विष्णु पास तब आए, वर देने के वचन सुनाए।।
मांगे उमा वर पति तुम तिनसों, चाहत जग त्रिभुवन निधि जिनसों।
एवमस्तु कही ते दोऊ गए, सुफल मनोरथ तुमने लए।।
करि विवाह शिव सों भामा, पुनः कहाई हर की बामा।
जो पढ़िहै जन यह चालीसा, धन जन सुख देइहै तेहि ईसा।।
॥ दोहा ॥
कूटि चंद्रिका सुभग शिर,
जयति जयति सुख खानि।
पार्वती निज भक्त हित,
रहहु सदा वरदानि।।
।।इति श्री पार्वती चालीसा।।
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माता पार्वती जी की आरती
!! Mata Parwati Ji Ki Aarti !!
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जय पार्वती माता, जय पार्वती माता,
ब्रह्म सनातन देवी शुभ फल की दाता । मईया जय...
अरिकुलपद्म विनासनी जय सेवकत्राता,
जगजीवन जगदंबा हरिहर गुण गाता । मईया जय...
सिंह का वाहन साजे कुंडल हैं साथा,
देवबंधु जस गावत नृत्य करत ता था । मईया जय...
सतयुग रूप शील अति सुंदर नाम सती कहलाता,
हेमांचल घर जन्मी सखियन संग राता । मईया जय...
शुम्भ निशुम्भ विदारे हेमांचल स्थाता,
सहस्त्र भुज तनु धरिके चक्र लियो हाथा । मईया जय...
सृष्टि रूप तुही है जननी शिवसंग रंगराता,
नंदी भृंगी बीन लही है हाथन मदमाता । मईया जय...
देवन अरज करत तव चित को लाता,
गावत दे दे ताली मन में रंगराता । मईया जय...
श्री ओम आरती मैया की जो कोई गाता,
सदा सुखी नित रहता सुख सम्पत्ति पाता । मईया जय...
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तो प्रेम से बोलिए! हृदय से बोलिए! मन से बोलिए!
" माता आदिशक्ति की जय"
" माता पार्वती की जय "
" जगत जननी की जय "
" गौरा पार्वती की जय "
" सभी देवी-देवताओं की जय "
" सनातन धर्म की जय "
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माता पार्वती चालीसा पढ़ने के लाभ
हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार मां दुर्गा, मां काली, देवी अन्नपूर्णा, माता गौरा तथा अन्य सभी देवियां पार्वती का ही रूप हैं। माता आदिशक्ति पार्वती जी की चालीसा पढ़ने से मन को शांति मिलती है तथा दुखों का अंत हो जाता है। अगर आप मन की शांति चाहते है तो आपको माता पार्वती की उपासना करनी चाहिए। मां पार्वती बहुत दयालु हैं, अगर आप सच्चे मन से उनकी आराधना करें तो वो हमारी गलतियों को तुरंत माफ कर देती हैं। उनकी चालीसा पढ़ना अत्यंत लाभकारी है तथा यह हमें जीवन में रोज नई ऊंचाइयों पर ले जाता है।
समभावित प्रश्न जो अक्सर सभी के मन में आते हैं?
श्री पार्वती चालीसा पाठ के नियम क्या हैं?
माता पार्वती चालीसा पाठ कौन कर सकता है?
पार्वती चालीसा पाठ को कब करना चाहिए?
माता पार्वती चालीसा का पाठ घर में पढें या मंदिर में?