Ganesh Chalisa | श्री गणेश चालीसा - ऐसे करें भगवान श्री गणेश को प्रसंन्न, सारे विघ्न होगें दूर

गणेश चालीसा का पाठ करने से सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है। भगवान श्री गणेश की कृपा से सिद्धि-बुद्धि, ज्ञान-विवेक की प्राप्ति होती है। गणेश चालीसा के प्रभाव से इंसान धनी बनता है, वो तरक्की करता है। वो हर तरह के सुख का भागीदार बनता है, उसे कष्ट नहीं होता।

श्री गणेश जी

किसी भी पूजा-पाठ अथवा शुभ कार्य से पहले प्रथम पूज्य श्री गणेश जी का आवाहन किया जाता है। बुधवार का दिन गणेश जी को समर्पित होता हैं। जो व्यक्ति विधि विधान से बुधवार के दिन गणेश जी की पूजा करता है उसके सारे संकट गणपतिदेव जी हर लेते हैं। इसी कारण इन्हें विघ्नहर्ता श्री गणेश भी कहा जाता है।मान्यता है कि प्रतिदिन या फिर विशेषकर बुधवार को गणेश चालीसा का पाठ करने से बप्पा की कृपा भक्त पर जरूर बरसती है।


प्रथम पुज्य श्री गणेश जी को प्रसंन्न करने के विशेष नियम

बुधवार के दिन स्नान आदि के बाद घर के पूजा स्थान या श्री गणेश जी के मंदिर में जाकर पंचोपचार से पूजा करें। ऐसा माना जाता है कि प्रभु केवल भाव के भुखे है भक्त का प्रेम भाव ही प्रयाप्त है। परंतु गणेश जी को दूर्वा, पुष्ण और उनके भोग अति प्रिय है आप मोदक अथवा मोतीचूर के लडडू आदि को भी समिलित करें। गणेश चालीसा का पाठ पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके करें। अब भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी का ध्यान कर पाठ की शुरुआत करें।



अब आप श्री गणेश चालीसा पाठ शुरू करें

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जय श्री गणेश

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!! श्री गणेश चालीसा !!

!! Shree Ganesh Chalisa !!
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॥ दोहा ॥

जय गणपति सदगुण सदन,

कविवर बदन कृपाल ।

विघ्न हरण मंगल करण,

जय जय गिरिजालाल ॥


॥ चौपाई ॥


जय जय जय गणपति गणराजू ।

मंगल भरण करण शुभः काजू ॥


जै गजबदन सदन सुखदाता ।

विश्व विनायका बुद्धि विधाता ॥


वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना ।

तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ॥


राजत मणि मुक्तन उर माला ।

स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ॥


पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं ।

मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥


सुन्दर पीताम्बर तन साजित ।

चरण पादुका मुनि मन राजित ॥


धनि शिव सुवन षडानन भ्राता ।

गौरी लालन विश्व-विख्याता ॥


ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे ।

मुषक वाहन सोहत द्वारे ॥


कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी ।

अति शुची पावन मंगलकारी ॥


एक समय गिरिराज कुमारी ।

पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी ॥


भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा ।

तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा ॥


अतिथि जानी के गौरी सुखारी ।

बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥


अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा ।

मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥


मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला ।

बिना गर्भ धारण यहि काला ॥


गणनायक गुण ज्ञान निधाना ।

पूजित प्रथम रूप भगवाना ॥


अस कही अन्तर्धान रूप हवै ।

पालना पर बालक स्वरूप हवै ॥


बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना ।

लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना ॥


सकल मगन, सुखमंगल गावहिं ।

नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥


शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं ।

सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥


लखि अति आनन्द मंगल साजा ।

देखन भी आये शनि राजा ॥


निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं ।

बालक, देखन चाहत नाहीं ॥


गिरिजा कछु मन भेद बढायो ।

उत्सव मोर, न शनि तुही भायो ॥


कहत लगे शनि, मन सकुचाई ।

का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥


नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ ।

शनि सों बालक देखन कहयऊ ॥


पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा ।

बालक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥


गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी ।

सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी ॥


हाहाकार मच्यौ कैलाशा ।

शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा ॥


तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो ।

काटी चक्र सो गज सिर लाये ॥


बालक के धड़ ऊपर धारयो ।

प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥


नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे ।

प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे ॥


बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा ।

पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥


चले षडानन, भरमि भुलाई ।

रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ॥


चरण मातु-पितु के धर लीन्हें ।

तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥


धनि गणेश कही शिव हिये हरषे ।

नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ॥


तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई ।

शेष सहसमुख सके न गाई ॥


मैं मतिहीन मलीन दुखारी ।

करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥


भजत रामसुन्दर प्रभुदासा ।

जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ॥


अब प्रभु दया दीना पर कीजै ।

अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै ॥


॥ दोहा ॥

श्री गणेश यह चालीसा,

पाठ करै कर ध्यान ।

नित नव मंगल गृह बसै,

लहे जगत सन्मान ॥


सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश,

ऋषि पंचमी दिनेश ।

पूरण चालीसा भयो,

मंगल मूर्ती गणेश ॥


!! इति !!


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!! श्री गणेश जी की आरती !! 
!! Shree Ganesh Ji Ki Aarti !!
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जय गणेश जय गणेश,

जय गणेश देवा ।

माता जाकी पार्वती,

पिता महादेवा ॥


एक दंत दयावंत,

चार भुजा धारी ।

माथे सिंदूर सोहे,

मूसे की सवारी ॥


जय गणेश जय गणेश,

जय गणेश देवा ।

माता जाकी पार्वती,

पिता महादेवा ॥


पान चढ़े फल चढ़े,

और चढ़े मेवा ।

लड्डुअन का भोग लगे,

संत करें सेवा ॥


जय गणेश जय गणेश,

जय गणेश देवा ।

माता जाकी पार्वती,

पिता महादेवा ॥


अंधन को आंख देत,

कोढ़िन को काया ।

बांझन को पुत्र देत,

निर्धन को माया ॥


जय गणेश जय गणेश,

जय गणेश देवा ।

माता जाकी पार्वती,

पिता महादेवा ॥


'सूर' श्याम शरण आए,

सफल कीजे सेवा ।

माता जाकी पार्वती,

पिता महादेवा ॥


जय गणेश जय गणेश,

जय गणेश देवा ।

माता जाकी पार्वती,

पिता महादेवा ॥


दीनन की लाज रखो,

शंभु सुतकारी ।

कामना को पूर्ण करो,

जाऊं बलिहारी ॥


जय गणेश जय गणेश,

जय गणेश देवा ।

माता जाकी पार्वती,

पिता महादेवा ॥


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तो प्रेम से बोलिए! हृदय से बोलिए! मन से बोलिए!
" प्रथम पुज्य श्री गणेश जी की जय "
" विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की जय "
" श्री लम्बोदर महराज की जय "
" श्री एकदन्ताय नम:"
" सभी देवी-देवताओं की जय "
" सनातन धर्म की जय "

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गणेश चालीसा पाठ करने से मिलेगें ढेरों लाभ

गणेश चालीसा का बुधवार के दिन पाठ करने से रिद्धि, सिद्धि, ज्ञान और विवेक में वृद्धि होती है. धन लाभ के लिए ये पाठ बहुत लाभकारी माना जाता है.

मानसिक शांति के लिए गणेश चालीसा का पाठ करना उत्तम माना जाता है. इससे घर में सुख शांति बनी रहती हैं. बच्चे अगर ये पाठ करें तो पढ़ाई में एकाग्रता बढ़ती है.

विधिवत बुधवार के दिन गणेश जी की आराधना और उनका पाठ करने पर व्यापार में तरक्की के रास्ते खुलते हैं. शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन गणेश चालीसा का पाठ करना चाहिए.





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